अमेरिका में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्र चिन्मय देवरे और तीन अन्य विदेशी छात्रों ने अमेरिकी सरकार की कठोर आव्रजन नीतियों के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है। मिशिगन की एक फेडरल कोर्ट में दायर इस मुकदमे में छात्रों ने आरोप लगाया है कि बिना किसी सूचना और वैध कारण के उनके एफ-1 वीजा रद्द कर दिए गए।
इस याचिका में चिन्मय के साथ चीन के जियांग्युन बु और क्यू यांग, और नेपाल के योगेश जोशी भी शामिल हैं।
बिना नोटिस और बिना कारण वीज़ा रद्द
छात्रों ने कोर्ट में दावा किया है कि:
- उन्होंने कभी कोई अपराध नहीं किया है।
- न ही आव्रजन नियमों का उल्लंघन किया गया।
- सिर्फ कुछ मामूली ट्रैफिक वॉइलेशन या चेतावनी थी, जिसे वीज़ा रद्दीकरण का कारण नहीं माना जा सकता।
छात्रों ने कहा कि डीएचएस और आईसीई ने उन्हें वीज़ा रद्द करने से पहले कोई नोटिस नहीं दिया।
ACLU ने सरकार की नीतियों को बताया ‘अनुचित और अवैध’
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) मिशिगन ने इन छात्रों का समर्थन करते हुए इसे सरकार की अनुचित और भेदभावपूर्ण नीति बताया है।
एसीएलयू के वकील रमीस वदूद ने कहा:
"अचानक वीज़ा रद्द कर देना छात्रों के भविष्य के साथ अन्याय है और यह अमेरिकी उच्च शिक्षा प्रणाली की छवि को नुकसान पहुंचाता है।"
ACLU ने ये भी बताया कि मिशिगन के अलावा न्यू हैम्पशायर, इंडियाना और कैलिफोर्निया जैसे राज्यों में भी इसी तरह के मामले सामने आए हैं।
ट्रंप की सख्त आव्रजन नीतियों पर बढ़ा अंतरराष्ट्रीय दबाव
यह मामला ऐसे वक्त सामने आया है जब डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की इमिग्रेशन पॉलिसी को लेकर पहले से ही आलोचना हो रही है।
कई छात्रों को बिना सूचना के वीजा रद्द होने या निर्वासन का नोटिस मिलने का डर सताने लगा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐसा चलता रहा, तो अमेरिका इंटरनेशनल एजुकेशन हब की छवि खो सकता है।
Visit More :- भारतीय छात्र ने ट्रंप को कोर्ट में घसीटा, सरकार की नीतियों पर उठाए सवाल